महामृत्युन्जय मंत्र पूर्ण जानकारी 100% सफलता के राज

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महामृत्युन्जय मंत्र पूर्ण जानकारी

    इस मंत्र के बारे में लगभग सब जानते है और सर्वाधिक प्रचलित भगवान शिव का मंत्र है। यह ऋग्वेद का एक श्लोक है जो की मृत्यु पर भी विजय प्राप्त करने में सक्षम है। इस मंत्र का विवरण शिवपुराण के साथ-साथ कई अन्य ग्रंथो में भी मिलता है। 
भगवान शिव को म्रत्यु के देवता भी स्वीकार किया जाता है। उनका मार्ग अद्वितीय है, जिसे अन्य मार्गों से अलग किया जाता है।

    शिव मंत्र का जप बहुत से लोग करते हैं, अनेक आसन्नों पर, तांत्रिकक अभियोग पूरे करने के लिए, मनोकामनाओं की प्राप्ति के लिए, डर, रोगों और अनिष्ट से मुक्ति के लिए और अनेक अन्य उद्देश्यों के लिए यह मंत्र प्रयोग किया जाता है। यह मंत्र प्राचीनतम काल से चली आ रही है और इसका जप तांत्रिक साधनाओं में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

    शिव मंत्र का जप करने से व्यक्ति के मन में एकाग्रता और ध्यान बढ़ता है। इससे मन की चंचलता कम होती है और व्यक्ति को शान्ति की अनुभूति होती है। इस मंत्र के द्वारा जप करने से मन, शरीर और आत्मा तीनों का ऐक्य हो जाता है और व्यक्ति को अपार शक्ति का अनुभव होता है। इसके साथ ही, शिव मंत्र के जप से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

    शिव मंत्र का जप करते समय, व्यक्ति को गहन सुंदरता और ज्ञान की प्राप्ति होती है। वह प्रभु शिव के प्रभाव में आकर उनकी कृपा प्राप्त करता है। शिव मंत्र को नौकरी और धन के मामले में भी उपयोगी माना जाता है।

    चाहे आप किसी भी उद्देश्य के लिए इस मंत्र का उपयोग कर रहे हों, ध्यान रखें कि अपने गुरु की मार्गदर्शन में ही इसका जप करें और ओम नमः शिवाय जरूर जोड़ें। यह मंत्र की शक्ति सिर्फ पूर्ण भावना वाले ज्ञानी मन में विद्यमान होती है।

    अपने जीवन में इस शिव मंत्र को ध्यान से जाप करके, आप अपनी मनोदशा को उन्नत कर सकते हैं और शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। जय भोलेनाथ! ओम नमः शिवाय!

     ग्रंथो के अनुसार ऋषि मार्कण्‍डेय के माता पिता निसंतान होने के कारण  भगवान शिव की तपश्या करके उन्हें प्रसन्न किया और पुत्र प्राप्ति का वरदान लिया। भगवान शिव ने उन्हें वर देते हुए कहा आपका एक पुत्र होगा जो महा ज्ञानी होगा,  परन्तु उसकी आयु मंत्र 16 वर्ष की होगी।

महामृत्युन्जय मंत्र

इस प्रकार ऋषि मार्कण्‍डेय जब सोलह वर्ष के हुए तो उनके माता –पिता ने उनकी इस व्यथा को जाना और कहा की में आपके पुत्र होने के नाते आपकी इस व्यथा को दूर करूँगा।

यह कहकर मार्कंडेय जी भगवान शिव की तपश्या करने लगे तभी यमलोक से यमराज ने पाश फेका और वह असफल रहे। एसा देख यमराज स्वयं बालक के प्राणों को हरने आये,जैसे ही यमराज ने पाश फेका वह शिवलिंग में जाकर लिपट गया।

पूजा में विघ्न देख महादेव रूद्र रूप में वहां प्रकट हुए और यमराज को वापस जाने को कहा परन्तु यमराज नहीं माने। यमराज और महादेव में युद्ध हुआ, फ़लस्वरू यम हार गए।

तब भगवान शिव ने मार्कंडेय जी को वरदान दिया की वह अमर रहेंगे। जिस श्लोक से मार्कंडेय जी जप कर रहे थे उसी को भगवान शिव ने महामृत्युन्जय मंत्र के रूप में इस आशीर्वाद दिया।

महामृत्युन्जय मंत्र, भगवान शिव का सबसे शक्तिशाली मंत्र है। इस मंत्र का उच्चारण सभी संकटों से रक्षा करने, बीमारियों को दूर करने, और आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाने में सहायता करता है। महामृत्युञ्जय मंत्र की प्राणायाम और ध्यान विधि से, हम साधना के माध्यम से शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अत्यंत सुखी और शांत जीवन जी सकते हैं।

इस मंत्र को नियमित रूप से जपने से हमारी आत्मिक एवं शारीरिक ताकतों का विकास होता है। भगवान शिव के कैसे इस मंत्र को पूरी श्रद्धा और महत्व देकर जपने से हमारी आशाओं और इच्छाओं की पूर्ति होती है। प्रत्येक श्लोक और पद को समझना और उच्चारण करना बहुत महत्वपूर्ण है।

इसलिए, हमें समय निकालकर इस मंत्र की ध्यानपूर्वक पाठ करने चाहिए और शिव के आशीर्वाद से जीवन के संघर्षों से साहस, एस्वर्य और सम्पूर्णता की प्राप्ति कर सकते हैं।

  मृत्युंजय मंत्र :-

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्  
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ :

त्रयंबकम = त्रि-नेत्रों वाला,

 यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं,

सुगंधिम= मीठी महक वाला,

पुष्टि = एक सुपोषित स्थिति,फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता,

वर्धनम = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है,स्वास्थ्य, धन, सुख में वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान करता है,

उर्वारुकमिव बन्धनान्  इस तरहबंधना

 तनामृत्युर = मृत्यु सेमुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति देंमा= नअमृतात= अमरता, मोक्ष

प्रत्येक शब्द का अर्थ सहित व्याख्या

‘त्र’ ध्रुव वसु ‘यम’ अध्वर वसु
‘ब’ सोम वसु ‘कम्‌’ वरुण
‘य’ वायु ‘ज’ अग्नि
‘म’ शक्ति ‘हे’ प्रभास
‘सु’ वीरभद्र ‘ग’ शम्भु
‘न्धिम’ गिरीश ‘पु’ अजैक
‘ष्टि’ अहिर्बुध्न्य ‘व’ पिनाक
‘र्ध’ भवानी पति ‘नम्‌’ कापाली
‘उ’ दिकपति ‘र्वा’ स्थाणु
‘रु’ भर्ग ‘क’ धाता
‘मि’ अर्यमा ‘व’ मित्रादित्य
‘ब’ वरुणादित्य ‘न्ध’ अंशु
‘नात’ भगादित्य ‘मृ’ विवस्वान
‘त्यो’ इंद्रादित्य ‘मु’ पूषादिव्य
‘क्षी’ पर्जन्यादिव्य ‘य’ त्वष्टा
‘मा’ विष्णुऽदिव्य ‘मृ’ प्रजापति
‘तात’ वषट
इसमें जो अनेक बोधक बताए गए हैं। ये बोधक देवताओं के नाम हैं।
शब्द की शक्ति-
शब्द वही हैं और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है-
शब्द शक्ति शब्द शक्ति
‘त्र’ त्र्यम्बक, त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘म’ मंगल ‘ब’ बालार्क तेज
‘कं’ काली का कल्याणकारी बीज ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘जा’ जालंधरेश ‘म’ महाशक्ति
‘हे’ हाकिनो ‘सु’ सुगन्धि तथा सुर
‘गं’ गणपति का बीज ‘ध’ धूमावती का बीज
‘म’ महेश ‘पु’ पुण्डरीकाक्ष
‘ष्टि’ देह में स्थित षटकोण ‘व’ वाकिनी
‘र्ध’ धर्म ‘नं’ नंदी
‘उ’ उमा ‘र्वा’ शिव की बाईं शक्ति
‘रु’ रूप तथा आँसू ‘क’ कल्याणी
‘व’ वरुण ‘बं’ बंदी देवी
‘ध’ धंदा देवी ‘मृ’ मृत्युंजय
‘त्यो’ नित्येश ‘क्षी’ क्षेमंकरी
‘य’ यम तथा यज्ञ ‘मा’ माँग तथा मन्त्रेश
‘मृ’ मृत्युंजय ‘तात’ चरणों में स्पर्श

सम्पूर्ण महामृत्युन्जय मंत्र का अर्थ

महामृत्युन्जय मंत्र

महामृत्युन्जय मंत्र

समस्‍त संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्‍व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्‍यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।||

इस मंत्र का विस्तृत रूप से अर्थ ||हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं।

उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए.जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं.

मंत्र को भी शास्त्रों में सुविधानुसार बाटा गया है

एकाक्षरी(1) मंत्र- ‘हौं’ ।
त्र्यक्षरी(3) मंत्र- ‘ॐ जूं सः’।
चतुराक्षरी(4) मंत्र- ‘ॐ वं जूं सः’।
नवाक्षरी(9) मंत्र- ‘ॐ जूं सः पालय पालय’।
दशाक्षरी(10) मंत्र- ‘ॐ जूं सः मां पालय पालय’।
(स्वयं के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो ‘मां’ के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा)

महामृत्युन्जय मंत्र

ॐ  हौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उव्र्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। ॐ स्वः भुवः भूः ॐ । ॐ सः जूं हौं।

ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुवतादि मंत्र शास्त्रीय ग्रंथों में त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌ उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। उक्त मंत्र महामृत्युन्जय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को ‘सर्वोत्तम’ महामंत्र’ की संज्ञान से विभूषित किया गया है- मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः। इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित ‘मृतसंजीवनी विद्या’ के नाम से भी जाना जाता है।

नारायणणोपनिषद् एवं मंत्र सार में- मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मतः अर्थात्‌ मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को ‘मृत्युंजय’ कहा जाता है। सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं- वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र हैं।
मृत्युंजय जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक, मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में विशिष्टता से उल्लेख है।

मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं- पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र। पहला मंत्र तीन व्यह्यति- भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय, दूसरा ॐ हौं जूं सः (त्रिबीज) और भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण ‘मृतसंजीवनी’ तथा उपर्युक्त हौं जूं सः (त्रिबीज) तथा भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है। इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।
इस प्रकार वेदोक्त ‘त्र्यम्बकं यजामहे’ मंत्र में ॐ सहित विविध सम्पुट लगने से उपर्युक्त मंत्रों की रचना हुई है। उपर्युक्त तीन मंत्रों में मृतसंजीवनी मंत्र ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌ ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ।
यह मंत्र सर्वाधिक प्रचलित एवं फल देने वाला माना गया है। कुछ लघु मंत्र भी प्रयोग में आते हैं, जैसे- त्र्यक्षरी अर्थात तीन अक्षरों वाला ॐ जूं सः पंचाक्षरी ॐ हौं जूं सः ॐ तथा ॐ जूं सः पालय पालय आदि। 

जानिए आपकी राशि अनुसार महामृत्युन्जय मंत्र जाप के लाभ––


मेष—महामृत्युन्जय मंत्र जाप से भूमि-भवन संबंधी परेशानियों एवं कार्यो में लाभ। व्यापार में विस्तार।
वृषभ- उत्साह एवं ऊर्जा की प्राप्ति होगी। भाई-बहनों से पूर्ण सुख एवं सहयोग मिलता रहेगा।
मिथुन- आर्थिक लाभ। स्वास्थ्य संबंघी बाधाओं एवं पीड़ाओं की निवृत्ति हेतु अचूक। पारिवारिक सुख।
कर्क- इस मंत्र का जाप करते रहें। जीवन का सर्वागीण विकास होगा।
सिंह- अनावश्यक प्रवृत्तियों पर अंकुश। आराम दायक नींद एवं पारिवारिक सुख की प्राप्ति।
कन्या- धन-धान्य संबंधी लाभ। मनोकामनाओं की पूर्ति। सुख एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति।
तुला- कार्य क्षेत्र में सफलताएं मिलेगी। व्यापारिक अवरोधों समाप्त होंगे। पदोन्नति हेतु विशेष लाभप्रद।
वृश्चिक- भाग्योदय कारक है। आध्यात्मिक उन्नति की संभावनाएं बनेंगी।
धनु- पैतृक संपत्ति की प्राप्ति। दुर्घटनाओं एवं आकस्मिक आपदाओं से रक्षा।
मकर- सुयोग्य जीवनसाथी की प्राप्ति। दांपत्य जीवन में मधुरता एवं व्यापारिक उन्नति के अवसर।
कुंभ- शत्रु एवं ऋण संबंधी सारे दोष दूर होंगे। प्रतियोगिताओं एवं वाद-विवाद में सफलताएं मिलेगी।
मीन- मानसिक स्थिरता। संतानोत्पत्ति। शिक्षा संबंधी बाधाओं का निवारण।

मृत्युंजय मंत्र और महामृत्युन्जय मंत्र दोनों ही मन्त्रों के जप शिवालय में शिवलिंग में समक्ष बैठकर करने चाहिए | सोमवार के दिन से इस मंत्र के जप शुरू किये जाने चाहिए | इसके अतिरिक्त सावन मास में किसी भी दिन या शिवरात्रि के दिन भी मंत्र जप शुरू करने के लिए अति शुभ होते है |

शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र के सवा लाख जप करने से भयंकर से भयंकर बीमारी या पीड़ा से छुटकारा मिलता है | किन्तु आप अपने सामर्थ्य अनुसार पहले दिन ही जप की संख्या का संकल्प लेकर शुरू करें | इसमें आप 11000 , 21000 या आप अपने सामर्थ्य के अनुसार जप संख्या सुनिश्चित करें |

महामृत्युन्जय मंत्र के जाप में रखें ये सावधानियां

1. महामृत्युन्जय मंत्र का जाप करते समय तन यानी शरीर और मन बिल्कुल साफ होना चाहिए। यानी किसी तरह की गलत भावना मन में नहीं होनी चाहिए।

2. मंत्र का जाप उच्चारण ठीक ढंग से करना चाहिए। अगर स्वयं मंत्र न बोल पाएं तो किसी योग्य पंडित से भी इसका जाप करवाया जा सकता है।

3. मंत्र का जाप निश्चित संख्या में करना चाहिए। समय के साथ जाप संख्या बढ़ाई जा सकती है।

4. भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर अथवा महामृत्युन्जय मंत्र के सामने ही इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

5. मंत्र जाप के दौरान पूरे समय धूप-दीप जलते रहना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

6. इस मंत्र का जाप केवल रुद्राक्ष माला से ही करना चाहिए। बिना आसन के मंत्र जाप न करें।

7. इस मंत्र का जाप पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए। निर्धारित स्थान पर ही रोज मंत्र जाप करें।

महामृत्युन्जय मंत्र के चमत्कारी लाभ

(1) रोग नाश और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए – महामृत्युन्जय मंत्र (वैदिक,पौराणिक या तांत्रिक) मंत्र का जाप करते हुए पारद शिव लिंग का जल से आभिषेक सवा घंटे तक प्रतिदिन करनें के बाद अभिषेक किया हुआ जल रोगी को पिलानें सें कैसा भी पुराना या कष्ट देने वाला या मृत्यु के समान कष्ट देने वाला रोग हो रोग नाश होकर उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है, यह प्रयोग लगातार कुछ दिनो तक करना चहिए यह मेरा स्वयं का परिक्षित प्रयोग है। 

(2) स्वास्थ्य लाभ के लिए – सर्व प्रथम आप तांत्रिक महामृत्युन्जय मंत्र के 1,37,500 मंत्र जाप का अनुष्ठान करके मंत्र सिद्धि प्राप्त करें तत्पश्चात जब कभी कोई , नजर दोष से पीडित बच्चे , टोने टोटकों से या तांत्रिक क्रिया से परेशान कोई व्यक्ति आए तो उसे मोर पंख से झाड़ा (झाड़नी) देने से समस्त समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

(3) स्वास्थ्य लाभ के लिए – शिव मन्दिर में आसन पर बैठकर अपनें सामनें जल से भरें ताँबे के कलश को रखकर 5 माला महा मृत्युञ्जय मंत्र का जाप करे। प्रत्येक माला जाप के बाद जल में फूंक मारते जाए , इस प्रकार से 5 माला जाप करके 5 बार जल में फूंक मारकर उस जल को रोगी को दिलाने से स्वास्थ्य में आश्चर्य जनक लाभ होता है। यह मेरा स्वयं का परिक्षित प्रयोग है इस प्रयोग से कई व्यक्तियों को फायदा हुआ है।

(4) अचानक आए संकट नाश के लिए – महामृत्युन्जय मंत्र से जायफल की आहुति देनें से रोगों का नाश और अचानक आए हुए संकटों का निराकरण होता हैं।

(5) मनोंकामना पूर्ति के लिए – महा मृत्युञ्जय भगवान को माह शिव रात्रि को 108 निंबुओंकी माला पहनाए अमावस्या को माला उतारकर निंबुओं को .अलग अलग करें , महामृत्युन्जय मंत्र से निंबु का हवन करनें से कोई एक मनोंकामना की पूर्ति हो जाएगी।

(6) सूर्य ग्रह शांति, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए – रविवार को ताँबे के पात्र में जल में गुड़ और लाल चंदन मिलाकर मृत्युञ्जय मंत्र जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ानें से सुख, समृद्धि ,ऐश्वर्य की प्राति और सूर्य ग्रह की शांति होती हैं।

(7) मानसिक शांति और मनों कामना की पूर्ति के लिए – प्रति सोमवार को चाँदी अथवा स्टील के पात्र में जल में दूध, सफेद तिल्ली और शक्कर मिलाकर मृत्युञ्जय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ानें से मानसिक शांति और मनोंकामना की पूर्ति तथा चन्द्र ग्रह की शांति होती हैं।

(8) पुत्र प्राप्ति, सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति के लिए – प्रति मंगलवार को ताँबे के पात्र में जल में गुड मिलाकर लाल फुल डालकर मृत्युञ्जय मंत्र जाप करते हुए शिव लिंग पर चढ़ानें से सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति,पुत्र की प्राप्ति और स्वास्थ्य लाभ व शत्रुओं का नाश तथा मंगल ग्रह की शांति होती है।

(9) धन लाभ, व्यापार वृद्धि तथा तीव्र बुद्धि करनें और उत्तम विद्या प्राप्ति के लिए – प्रति बुधवार को कांसे के पात्र में दही, शक्कर, और घी मिलाकर मृत्युञ्जय मंत्र का जाप करते हुए शिव लिंग पर चढ़ाने से बुद्धि तीव्र (तेज) होकर उत्तम विद्या की प्राप्ति होती है,व्यापार में वृद्धि होकर धन लाभ होता हैं और बुध ग्रह की शांति होती हैं।

(10) उत्तम विद्या, धनधान्य और पुत्र पौत्र सुख और मनोंकामना की पुर्ति के लिए – प्रति गुरू वार को काँसे या पीतल के पात्र में जल में हल्दी मिला कर मृत्युञ्जय मंत्र जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ानें से उत्तम विद्या की प्राप्ति, धनधान्य तथा पुत्र पौत्र आदि की प्राप्ति अौर बृहस्पति (गुरू) ग्रह की शांति होती हैं।

(11) विवाह, संतान और भौतिक सुख साधनों की वृद्धि के लिए – प्रति शुक्रवार को चाँदी स्टील के पात्र में जल,दूध, दहि, मिश्री या शक्कर मिलाकर मृत्युञ्जय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ानें से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं, संतान सुरव और भौतिक सुख साधनों की वृद्धि होती है और शुक्र ग्रह की शांति होती हैं।

(12) मानसिक कष्ट, शत्रु भय,आर्थिक संकट निवारण और धनधान्य, व्यापार की वृद्धि राज्य प्राप्ति के लिए – शनिवार को बादाम तेल और जैतुन तेल मे गुलाब और चंदन इत्र मिलाकर एक करके चोमुखी(चार बत्ती वाला) दीपक शिव मन्दिर मे जलाकर लोहे या स्टील के पात्र में सरसो के तेल भरकर मृत्युञ्जय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ानें से मानसिक कष्ट का निवारण होता है, शत्रुओं का नाश होता हैं, व्यापार मे उन्नति या नौकरी में उन्नति होती है, धनधान्य की वृद्वि होती है, अपने कार्य क्षेत्र में राज्य की प्राप्ति होती है ।

(13 ) महामृत्युन्जय मंत्र के जाप, यज्ञ, हवन में प्रयुक्त होने वाली हवन सामग्री द्वारा आहुति देने से भी अलग-अलग लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे- घी से आयु रक्षा, घी लगी दूब से महारोग, शहद व घी से मधुमेह, घी, शहद, शक्कर व साबुत मसूर से मुंह के रोग, घी लगी आक की लकड़ी या पत्ते से स्वास्थ्य और शरीर की रक्षा, ढाक के पत्ते से नेत्ररोग, बेल पत्ते या फल से पेट के रोग, भांग, धतूरा या आक से मनोरोग, गूलर समिधा, आंवले या काले तिल से शरीर का दर्द, ढाक की समिधा या पत्ते से सभी रोगों से मुक्ति, दूध में डूबे आम के पत्तों से जटिल बुखार दूर होता है।

सामान्य महामृत्युन्जय मंत्र प्रयोग जो आपकी हर समाश्या का करेगा समाधान

किसी भी सोमवार को शिवालय में रुद्राक्ष माला,बेलपत्र ,आंकडे के फूल,धतुरा,जल पात्र लेकर जाये आये और पूर्ण श्रद्दा से पूजन करे । जलाभिषेक करके भगवान शिव के समक्ष हाथ में जल लेकर संकल्प लेते हुए अपनी परेशानी रखे । यथा संभव जाप का संकल्प लेकर जप चालू कर दें ।

जप पूर्ण होने के बाद क्षमा प्रार्थना करे और मनोकामना पूर्ण होने की कामना करे । निश्चय ही कुछ ही दिनों में आपकी परेशानी का हल निकल जायेगा । यह प्रयोग अगर आप किसी रोगी के लिए कर रहे है तो संकल्प लेते समय उनके निमित्त में अवश्य बोले ।

महामृत्युन्जय मंत्र जो आपको सदा रखे निरोगी। महामृत्युन्जय मंत्र संपूर्ण जानकारी आज हमने दी अगर इस मंत्र की जानकारी में कोई अभाव रहा हो तो क्षमा करें।

महामृत्युन्जय मंत्र की जानकारी

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