No products in the cart.
उर्वशी अप्सरा भैरवी चक्र साधना सिर्फ 2 दिन की।
उर्वर्शी अप्सरा भैरवी चक्र साधना
अप्सरा साधना मानव जीवन में उच्चतम सुख, संतुष्टि और समृद्धि को प्राप्त करने का एक विधान है। यह साधना प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है और यह विशेष विधि का पालन करके की जाती है। अप्सराओं को बुलाने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए उपासक इस साधना का उच्चारण और अनुसरण करते हैं। यह साधना मनोवैज्ञानिक, तांत्रिक और धार्मिक सिद्धांतों पर आधारित है।
अप्सरा साधना का मुख्य लक्ष्य उर्वशी अप्सरा के साथ संयोग स्थापित करना है। यह साधना आपके मनोवैज्ञानिक और तांत्रिक क्षेत्र में विकसित होने में मदद कर सकती है और आपको आनंदमय और उत्तेजनापूर्ण जीवन प्रदान कर सकती है। साधक को आत्मसंयम, शुद्ध चित्त और निष्काम भाव से कार्य करना चाहिए।
उर्वशी अप्सरा साधना की प्रभावी विधि और विधान उस ग्रंथ के अनुसार किया जाता है, जिसमें यह वर्णित है। साधना में ध्यान, मंत्र जप, पूजा और आत्मसंयम की कला का पालन किया जाता है। एक निरंतर और निष्ठाबद्ध अभ्यास के द्वारा आप अप्सरा साधना में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
याद रखें, अप्सरा साधना धार्मिक और तांत्रिक तत्वों पर आधारित होती है और इसका उच्चारण और पालन करने से पहले आपको योग्यता और अनुभव के साथ छठीं पंखुड़ी द्वारा मंत्र-शक्ति मन्त्र-तंत्र की माध्यम से गुरु की आग्या प्राप्त करना चाहिए।
उर्वशी अप्सरा साधना की विधियां ग्रंथो में दी हुई है यह साधना विधि साबर मन्त्र की है और वास्तव में यह शीघ्र फलदायी है। और मात्र २ दिन की साधना है।
किसी भी शुक्रवार को यह साधना प्रारंभ कर सकते है और शनिवार की रात्रि को समाप्त कर सकते है। इस साधना को स्त्री या पुरुष दोनों ही संपन्न कर सकते है। साधना काल में कोई भी सुन्दर वस्त्र धारण करना है जो भी आप पर खिल सके।
उर्वशी अप्सरा साधना विधी
-
उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बेठ जाए।
-
एक थाली में “उर्वर्श्ये नमः” लिखे और उसके आगे गुलाब या अन्य पुष्प बिछाकर उसपर भैरवीचक्र स्थापित करदें।
-
पंचोपचार पूजन संपन्न करे। संकल्प लेना आवश्यक होता है।
-
यन्त्र के सामने सुद्ध घी का दीपक लगाए। अब पान मुँह में रखकर चबा लें।
-
स्फटिक की माला से निम्न लिखित मंत्र 21 बार जप करें।
उर्वशी अप्सराभैरवी चक्र साधना
शाबर मंत्र
ॐ नमो आदेश गुरु को आदेश ,गुरु जी के मुह में ब्रम्हा उनके मध्य में विष्णु और नीचे भगवान महेश्वर स्थापित है, उनके सारे शारीर में सर्व देव निवास करते है, उनको नमस्कार ! इंद्र की अप्सरा ,गन्धर्व कन्या उर्वर्शी को नमस्कार ! गंगान मंडल में घुंघरुओं की झंकार और पाताल में संगीत की लहर !
लहर में उर्वशी के चरण,
चरण में थिरकन,
थिरकन में सर्प,
सर्प में कामवासना ,
कामवासना में कामदेव,
कामदेव में भगवान शिव,
भगवान शिव ने जमीन पर उर्वशी को उतारा, शमशान में धुनी जमाई,उर्वशी ने नृत्य किया,सात दीप नवखंड में फूल खिले डाली झूमि,पूर्व-पश्चिम ,उत्तर -दक्षिण ,आकाश -पातळ में सब मस्त भये!
मस्ती में एक ताल ,दो ताल,तीन ताल,
मन में हिलोर उठी,
हिलोर में उमंग,
उमंग में ओज ,
ओज में सुंदरता,
सुंदरता में चंद्रमुखी,
चन्द्रमुखी में शीतलता ,
शीतलता मे सुगंध
और सुगंध में मस्ती,
यह मस्ती उर्वशी की मेरे मन भाई!
यह मस्ती मेरे सारे शरीर में अंग अंग में लहराई,
उर्वशी इंद्र की सभा छोड़ मेरे पास आवे,मेरी प्रिया बने, हरदम मेरे साथ रहे ,मेरो कहियो करें , जो कहुँ सो पुरो करे,सोंचू तो हजार रहे, यदि ऐसा न करे तो दस अवतार की दुहाई, ग्यारह रूद्र की सौगंध, बारह सूर्य को वज्र तेंतीस कोटि देवी-देवताओं की आण ! मेरो मन चढे, अप्सरा को मेरो जीवन उसके श्रृंगार को,मेरी आत्मा उसके रूप को, और में उसको, वह मेरे साथ रहे, धन, योवन ,संपत्ति , सुख दें, कहियो करे हुकुम मान, रूप यौवन भार से लदी मेरे सामने रहे,जो ऐसा न करे तो भगवान शिव को त्रिशूल और इंद्र को वज्र उस पर पड़े !
इस मंत्र का २१ बार उच्चारण पर्याप्त माना गया है और साबर मंत्र होने के कारण पूर्ण सिद्धि दायक है। मंत्र जप पूर्ण होने पर साधना सामग्री को नदी में प्रवाहित कर दे।
जब अप्सरा आपके सामने प्रकट होगी तो आप उसका सवागत करें और हाथ में हाथ रखकर वचन लें। जब भी आप इस मंत्र का १ बार उच्चारण करेंगे वह आपके सामने प्रस्तुत हो जाएगी. इस प्रकार साधना संपन्न होती है।