दशांश हवन | 10 वां हिस्सा हवन

अब हम हंस मुद्रा से 3-3 आहुति निम्न मंत्र की देंगे :

ॐ रिद्धि सिद्धि सहिताय श्रीमन महा गणाधिपतये नमः स्वाहा

ॐ श्री इष्ट दैवतायै नमः स्वाहा
ॐ श्री कुल दैवतायै नमः स्वाहा
ॐ सर्वभ्यो पित्रभ्यो नमः स्वाहा
ॐ ग्राम देवतभ्यो नमः स्वाहा
ॐ स्थान देवतभ्यो नमः स्वाहा
ॐ सर्वभ्यो लोकपालभ्योनमः स्वाहा

ॐ सर्वभ्यो दिक्पालभ्यो नमः स्वाहा

ॐ नव ग्रहाये नमः स्वाहा
ॐ _श्री शची पुरन्धरभ्यो नमः स्वाहा
ॐ श्री लक्ष्मी नारायणभ्यो नमः स्वाहा
ॐ श्री उमा महेश्वरभ्यो नमः स्वाहा
ॐ श्री वाणी हिरण्यगर्भभ्यो नम स्वाहा
ॐ श्री मातृपितृचरण कमलभ्यो नमः स्वाहा
ॐ सर्वभ्यो देवतभ्यो नमः स्वाहा
ॐ सर्वभ्यो ब्राह्मणभ्यो नमः स्वाहा
ॐ रिद्धि सिद्धि सहिताय श्री मन महागणपतये नमः स्वाहा

अब हम मूल मंत्र की संकल्पित संख्या में आहुतिय दाहिने हाथ से देंगे तथा बाए हाथ से माला जप करेंगे: मंत्र की पीछे स्वाह लगाना है जैसे : “ह्रीं “ मंत्र का जप किया है तो “ ह्रीं स्वाह “।

स्विष्टकृत होम : जाने-अनजाने में हवन करते समय जो भी गलती हो गयी हो, उसके प्रायश्चित के रूप में गुड़ व घृत की आहुति दें |

ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम |

बची हुई हवन सामग्री को निम्न मंत्र बोलते हुए तीन बार में होम दें | 

(१) ॐ श्रीपतये स्वाहा |

(२) ॐ भुवनपतये स्वाहा |

(३) ॐ भूतानां पतये स्वाहा |

पूर्णाहुति होम :  हाथ में नारियल का गोला ले अग्नि में रख दे, निम्न मंत्र उच्चारण करते हुए नारियल के ऊपर घी की धार लगाये |

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते | पूर्णस्य पूर्णमादाय पुर्न्मेवावशिष्यते ||

ॐ शांति: शांति: शांति:

दशांश हवन में अब हम तर्पण करेंगे जिसके अंतर्गत कुल हवन का दसवां भाग होगा, जल पात्र ले जिसमे 1-2 लीटर पानी हो । उस पात्र में जल भरकर थोड़ा गंगाजल मिला लें और तत्पश्चात थोड़ा शहद-घी-गुड-केशर-गौदुग्ध -पुष्पादि मिलाकर दाहिने हाथ की अंजलि में जल भरकर पुनः उसी पात्र में छोड़ दें और बाएं हाथ से माला जप का प्रयोग करें।

मंत्र में हम स्वाह के स्थान पर तर्पयामि उछारण करेंगे। जैसे “ह्रीं  तर्पयामि” का उच्चारण करते हुए जल को दायें हाथ की अंजुली में भरकर पुनः उसी पात्र में गिरा दें और बाएं हाथ से माला पर मन्त्र जपते और दायें हाथ से जल भरते-गिराते रहेगे।

दशांश हवन में तर्पण कर्म पूरा होने के बाद हमें तर्पण जप का दसवा हिस्सा मार्जन करना होता है जिसमे हमें   एक पात्र में गंगाजल अथवा जल जिसमे पुष्प एवं सुगन्धादि का मिश्रण हो, एक हाथ में कुश घास लेकर उसे उस जल में डुबोकर बाएं हाथ में माला लेकर मंत्र बोलते हुए “ह्रीं मार्जयामि” कुश से जल यंत्र अथवा इष्ट के चित्र पर जल छिड़कें तत्पश्चात पुनः मंत्र उच्चार करते हुए पुनः जल छिड़कें।

सभी कार्य होने के बाद अपने आसन के निचे 3 बार शक्राय नमः बोलकर 3 बार  जल छोड़ना है और उस जल से तिलक लगाये।   अब कुण्ड के इशान कोण से भष्म का तिलक लगाये।

भस्मधारणम : यज्ञकुंड से स्त्रुवा (जिससे घी की आहुति दी जा रही थी ) में भस्म लेकर पहले बापूजी को तिलक करें, फिर सभी लोग स्वयं को तिलक करें |

प्रदिक्षणा : हवनकुंड की 5 परिक्रमा करें | 

यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च |

तानि सर्वाणि नश्चन्तु प्रदक्षिण: पदे पदे ||

दुर्जन : सज्जनों भूयात सज्जन: शंतिमाप्नुयात |

शांतो मुच्येत बंधभ्यो मुक्त: चान्यान विमोचयेत ||

क्षमा प्रार्थना : पूजन, जप, हवन आदि में जो गलतियाँ हो गयी हों , उनके लिए हाथ जोड़कर सभी लोग क्षमा प्रार्थना करें |

ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम |

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ||

ॐ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर |

यत्पूजितं माया देवं परिपूर्ण तदस्तु में ||

विसर्जनम : थोड़े-से अक्षत लेकर देव स्थापन और हवन कुंड में निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए चढायें – 

ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर |

यत्र ब्रम्हादयो देवा: तत्र गच्छ हुताशन ||

अब हमें 12 कन्या या ब्राम्हणों को भोजन करवाना चाहिए. अगर सामर्थ्य न हो तो हम मिठाई भी बाँट सकते है.

दशांश हवन कार्य सपूर्ण होता है।  आप सभी किसी भी मंत्र को सिद्ध करने के लिए इस विधि का उपयोग कर सकते है, बहुत ही सरल हवन विधि है आप इसके माध्यम से नित्य हवन भी कर सकते है. आशा करते है आपको हमारी यह विधि आपको पसंद आएगी।

धन्यवाद

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